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सेनाध्यक्ष रावत बोले, कश्मीर पर रणनीति बदलते रहने की जरूरत, यथास्थितिवादी नहीं हो सकते

सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने कश्मीर में स्थिति सुधारने के लिये सैन्य और राजनीतिक अभियान साथ-साथ चलाने की वकालत की है।

Updated on: 14 Jan 2018, 09:29 PM

नई दिल्ली:

सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने कश्मीर में स्थिति सुधारने के लिये सैन्य और राजनीतिक अभियान साथ-साथ चलाने की वकालत की है।

कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने वाले जनरल विपिन रावत ने कहा कि सुरक्षा बल राज्य में 'यथा स्थिति' बनाए नहीं रख सकते हैं और उन्हें स्थिति से निपटने के लिये नई रणनीति अपनानी होगी।

उन्होंने कहा, 'राजनीतिक पहल के साथ-साथ दूसरे उपाय भी जारी रहने चाहियें। अगर साभी में तालमेल बेहतर हो तो हम कश्मीर में परिवर्तन देख सकते हैं। सैन्य और राजनीतिक पहल को अपनाना ही होगा।'

उन्होंने जोर दिया कि पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की जरूरत है ताकि सीमा पर से होने वाली घुसपैठ को रोकी जा सके। उन्होंने संकेत दिये कि सेना आतंकवाद के खिलाफ अपनी कड़ी कार्रवाई की रणनीति को जारी रखेगी।

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जब उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तान पर दबाव बनाया जाना चाहिये ताकि आतंकवादियों को भेजना वो बंद करे।

उन्होंने कहा, 'हां, आप यथास्थितिवादी नहीं हो सकते हैं। आपको लगातार सोचना होगा और आगे बढ़ना होगा। ऐसे क्षेत्र में काम करने के लिये आपको हमेशा अपनी नीतियां और तरीके बदलने होंगे।'

सरकार का कश्मीर मुद्दे पर वर्ताकार नियुक्त करने को लेकर उन्होंने कहा, 'सरकार ने जब वर्ताकार नियुक्त किया तो वो इसीलिये किया। वो सरकार के प्रतिनिधि हैं और कश्मीर के लोगों से बातचीत कर उनकी समस्याएं और परेशानियां सुनेंगे, ताकि उसे राजनीतिक स्तर से सुलझाया जा सके।'

उन्होंने कहा कि कश्मीर को लेकर हमें नई रणनीतियां और तरीके अपनाने होंगे।

पिछले साल सेना ने जम्मू-कश्मीर में आतंक को रोकने के लिये आक्रामक तरीका अपनाया था। साथ ही पाकिस्तान की तरफ से की जा रही सीज़ फायर उल्लंघन का मुंहतोड़ जवाब भी दे रही थी।

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उन्होंने कहा, 'सेना कश्मीर की समस्या को सुलझाने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। हमारा काम था कि जो आतंकी वहां हिंसा फैला रहे हैं उन्हें सबक सिखाया जाए। साथ ही जिन लोगों को आतंकवाद में शामिल होने के लिये बरगलाया जा रहा है उन्हें रोकना भी हमारी जिम्मेदारी है।'

उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि हम उन्हें रोकें और साथ ही ये भी जिम्मेदारी है कि हम यहां के लोगों से मिलें जुलें और उनको साथ लेकर चलें।

यह पूछे जाने पर कि क्या वहां पर स्थिति बेहतर हुई है तो उन्होंने कहा कि पिछले साल की अपेक्षा बेहतर हुई है लेकिन हमें अतिआत्मविश्वास में नहीं रहना चाहिये।

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