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मोदी सरकार अगर है गंभीर तो फिर कौन मार रहा है किसानों का हक?

चार साल पूरे होने पर मोदी सरकार ने नारा दिया- 'साफ नीयत सही विकास'। लेकिन किसानों से जुड़े आंकड़ें मानों बड़े सवाल खड़े करते हैं- नीयत पर भी और विकास पर भी।

Updated on: 18 Jun 2018, 09:31 PM

highlights

  • किसानों का प्रस्तावित 52,655 करोड़ का बजट घटकर केवल 39,682 करोड़ रुपये रह गया
  • बजट में दी गई रकम कम हो गई इसके बावजूद किसानों तक नहीं पहुंच पा रही है
  • देखिए किसानों के मुद्दे पर सबसे बड़ी चर्चा 'इंडिया बोले' में आज शाम 6:00 बजे न्यूज़ नेशन  पर

नई दिल्ली:

चार साल पूरे होने पर मोदी सरकार ने नारा दिया- 'साफ नीयत सही विकास'। लेकिन किसानों से जुड़े आंकड़ें मानों बड़े सवाल खड़े करते हैं- नीयत पर भी और विकास पर भी।

ऐसा कहने की वजह हैं खुद सरकारी आंकड़ें, जो बता रहे हैं कि बजट में जितना ऐलान हुआ, बाद में वो बदल गया, कम भी हो गया और अफसोस की बात है कि ये कम हुई रकम भी खर्च नहीं हो पा रही। या कहें कि किसानों तक नहीं पहुंच पा रही है।

2016-17 में किसान का वास्तविक बजट 40,626 करोड़ रुपये रहा। 2017-18 में सरकार ने इसे बढ़ाकर 52,655 करोड़ रुपये कर दिया, ये अनुमानित रकम थी।

लेकिन संशोधन के बाद ये आंकड़ा घटकर केवल 46,105 करोड़ रुपये हो गया और फरवरी 2018 के वास्तविक आंकड़ों पर जब आप गौर करेंगे तो चौंक जाएंगे क्योंकि लगभग 53 हजार करोड़ रुपये का किसानों का प्रस्तावित बजट घटकर केवल 39,682 करोड़ रुपये रह गया यानि तेरह हजार करोड़ रुपये कम!

ये सब कुछ तब हो रहा है जबकि आबादी के हिसाब से खेती किसानी के लिए जितना आवंटन होना चाहिए, उतना आज तक नहीं हो सका।

साल 1985 में राजीव गांधी ने कहा था कि 100 पैसा दिल्ली से जाता है तो 15 पैसा ही जमीन तक पहुंचता है।

33 साल बीत गए, लेकिन किसानों के हालात मानों आज भी जस के तस हैं। तो सवाल सुशासन के दावे पर है क्योंकि 20 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता में है।

सवाल मैक्सिमम गर्वनेंस पर है क्योंकि बजट पेश करने की तारीखों में बदलाव बजट की रकम के सही इस्तेमाल के दावे पर हुआ था। सवाल नीयत पर है क्योंकि किसान आज भी खुदखुशी करने पर मजबूर है।

सवाल आउटले बनाम आउटकम पर है। ऐसा नहीं कि ये सब पहली बार हो रहा हो। पिछली यूपीए सरकार में हालात कमोबेश ऐसे ही थे।

तब चुनाव से पहले हुई कर्ज माफी में हर पांच में से एक मामले में धांधली खुद कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने बताई थी! कर्ज माफी का लाभ उनको भी मिला था, जो हकदार नहीं थे। कमेटियां बनती रहीं, लेकिन खेती की तस्वीर नहीं सुधर सकी।

हालात आज भी कुछ ऐसे ही हैं। ऐसे में सवाल अन्नदाता की बदहाली का है। इन्हीं अहम मुद्दों पर न्यूज़ नेशन की खास पड़ताल। देखिए मेरे साथ देश के सबसे पसंदीदा डिबेट शो में से एक- 'इंडिया बोले', आज (सोमवार) शाम 6:00 बजे न्यूज़ नेशन टीवी पर।

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