अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: कामकाजी महिलाओं की जिंदगी किसी 'मैराथन' से कम नहीं
सुबह की अलार्म के साथ ही कामकाजी महिलाओं की मैराथन शुरू हो जाती है, शायद ही कोई महिला अलार्म के बटन को दबाने की गलती भी कर पाती हो।
नई दिल्ली:
8 मार्च को महिलाओं के सम्मान के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। आज महिलाएं दहलीज़ लांघकर और समाज की तमाम बेड़ियां तोड़कर जीत का परचम लहरा रहीं है।
महिलाएं घर की वो मज़बूत नींव है जो बिना रुके अपने काम करती जाती है। सुबह की अलार्म के साथ ही कामकाजी महिलाओं की मैराथन शुरू हो जाती है, शायद ही कोई महिला अलार्म के बटन को दबाने की गलती भी कर पाती हो, क्योंकि 5 मिनट के स्नूज का मतलब है सुबह के 5 काम छूट जाना।
सुबह सबकुछ फिक्स होता है, कितनी रोटियां बनानी हैं, सब्ज़ी कौन सी बनेगी और दाल कौन सी, बच्चा क्या खाएगा और पति लंच में क्या ले जाएंगे, घर में दिन में रहने वाले लोगों की ज़रूरतें क्या होंगी, सब जैसे पहले से ही तय होता है, या फिर भागदौड़ के रात में ही जैसे सबकुछ तय हो जाता है।
बस अगर कुछ तय नहीं होता तो उसका खुद का प्लान। ना तो यह तय होता है कि वो क्या खायेगी, क्या पहनेगी और ऑफिस में लंच पर क्या ले जायेगी। ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक उसकी जिन्दगी बस किसी तरह शिफ्टों में उलझकर रह जाती है।
सुबह की पूरी ड्यूटी के बाद भागदौड़ कर ऑफिस टाइम पर पहुंचना भी रोज़ाना एक मिशन से कम नहीं। अगर बस, ऑटो, और मेट्रो पांच मिनट लेट हो गई तो समझो हो गया श्रीगणेश। दफ्तर में बॉस से एक बार फिर पूरी कहानी सुननी होगी कि वो कितना काम करते हैं और फिर भी टाइम पर होते हैं।
बहरहाल ऑफिस में टारगेट, काम, क्लोजिंग सबकुछ समय पर निपटाना है, लेकिन कुछ साथी ऐसा महसूस करवाएंगे कि ये नौकरी बस उनके रहमोकरम पर ही चल रही है, काम तो महिलाएं कुछ करती नहीं, उनको गॉसिप से ही फुरसत नहीं। तमाम तरह के ताने और दिनभर चक्की में पिस्ते रहना।
ऑफिस के बाद भले ही पुरुषों की दिहाड़ी ख़त्म हो जाती हो लेकिन जनाब महिलाओं की रिले रेस अभी जारी है। घर में कदम रखते ही परिवार के लोग घर में कई कामों के लिए उसका इंतज़ार कर रहे होते हैं, यहां तक कि शाम की चाय भी अभी उसी के इंतज़ार में होती है।
ऑफिस से घर लौटा पुरुष बुरी तरह थक चुका होता है अब वो सोफे से सिर्फ सोने के लिए उठेगा लेकिन महिला के कामों की नई फेहरिस्त अभी शुरु होगी, रात का खाना, बच्चों का होमवर्क, कपड़े, मेड, सुबह की पूरी तैयारी और भी ना जाने क्या क्या, ये लिस्ट हर रोज़ कम होने के बजाय बढ़ती ही रहती है।
बावजूद इस पूरे मैराथन के रात को एक सुकून ज़रूर हर उस कामकाजी महिला के चेहरे पर होता है, अपने पैरों पर खड़ा होने का, अपनी आज़ादी का, खुली हवा में सांस लेने का, सुकून इस बात का कि उसके सामने कोई भी मन्ज़िल बड़ी नहीं है। महिला दिवस पर हर कामकाजी महिला को सलाम।
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