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आज़ादी का 72वां साल: जिस तिरंगे के आगे झुकता है सिर, जानिए उस राष्ट्रीय ध्वज के ऐतिहासिक सफर की कहानी

सोने की चिड़िया' कहे जाने भारत को स्वतंत्र हुए 71 साल होने जा रहे है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभर में लहराते भारत की आन शान बान 'तिरंगे' की बड़ी ही दिलचस्प कहानी है।

Updated on: 14 Aug 2018, 02:50 PM

नई दिल्ली:

'सोने की चिड़िया' कहे जाने भारत को स्वतंत्र हुए 71 साल होने जा रहे है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभर में लहराते भारत की आन शान बान 'तिरंगे' की बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना ध्वज होता है जो कि एक स्वतंत्र देश होने के संकेत है। पिंगली वैकैयानन्द ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना की थी। अंग्रेज़ों की गुलामी की काली स्याह रात के बाद जब स्वतंत्रता का सूरज निकला, स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पहले 22 जुलाई को भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। 15 अगस्त और 26 जनवरी के बीच भारत के राष्ट्रिय ध्वज को अपनाया गया और इसके बाद भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया।

भारत के वीरों के बलिदान और त्याग की लालिमा भारत के तिरंगे में बसी है, सबसे पहले महात्मा गांधी ने  अप्रैल, 1921 में  देश के लिए राष्ट्रीय ध्वज की जरूरत की बात की थी। केसरिया और हरे रंग वाला  राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने का कामपिंगली वैंकेयानन्द को दिया था। कामपिंगाली  मछलीपट्टनम के रहने वाले थे। महात्मा गांधी ने लाला हंसराज के कहे मुताबिक इस झंडे के बीच में चरखा जोड़ने का सुझाव दिया था। यह सुझाव  स्वदेशी झंडे का प्रमाण था। भारत के राष्ट्रपिता 1921 के कांग्रेस सेशन में इस ध्वज को प्रस्तुत करना चाहते थे, लेकिन झंडा समय पर तैयार न हो सका।

2 धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले झंडे में सफ़ेद रंग जोड़ा गया।  बाकी धर्मों के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। बाद में 1929 में 3 रंग के इस झंडे की व्याख्या गांधी जी ने इस तरह की- केसरिया रंग लोगों के बलिदान के लिए, सफेद रंग पवित्रता के लिए और हरा रंग उम्मीद के लिए।

1906 की कहानी
1906 की कहानी

भारत के राष्ट्रिय ध्वज ने 6 बार अपना रूप बदला। 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान स्क्वेयर में राष्ट्रिय ध्वज को फहरया गया था। इस झंडे में तीन रंग की पट्टियां थी। सबसे ऊपरी पट्टी हरे रंग की थी जिसमें सफ़ेद रंग के 8 फूल बने हुए थे। बीच वाली पीली पट्टी में वंदे मातरम लिखा हुआ था। वहीं लाल पट्टी में सूर्य और चन्द्रमा अंकित थे।

1907 की कहानी
1907 की कहानी

बर्लिन कमिटी का झंडा पहले झंडे से काफी कुछ मिलता जुलता था। इसमें बीच की पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा था। नारंगी रंग की ऊपरी पट्टी पर सात टारे अंकित थे। यह सितारें सप्तर्षि का तारामंडल का प्रतीक थे। इसे 1907 में मैडम काम ने फहराया था। इसके साथ बर्लिन में आयोजित एक सभा में इसे भारत के राष्ट्रिय ध्वज के रूप में फहराया गया था।

1917 की कहानी
1917 की कहानी

इसके बाद होम रूल आंदोलन के दौरान राष्ट्रिय ध्वज का तीसरा रूप सामने आया था। 1917 में इस झंडे को होम एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था। इस झंडे में पांच लाल और चार हरी पट्टियां थीं, जिनपर सात सितारें छापे थे। इसके बाएं कोने में ऊपरी ओर ब्रिटेन का आधिकारिक झंडा भी छपा था।

1921 की कहानी
1921 की कहानी

स्वराज झंडे में केसरिया रंग, सफेद रंग और हरा रंग था। स्वराज इंडिया के झंडे में नीला चरखा बना हुआ था। 1921 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की एक बैठक में गांधी जी को एक युवा ने यह झंडा दिया था। केसरिया, सफ़ेद और हरी पट्टियों से बने ध्वज पर नीले रंग में चरखा अंकित था।

1931 की कहानी
1931 की कहानी

खिलाफत आंदोलन में 3 रंग वाले स्वराज झंडे का इस्तेमाल किया। इस आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू ने स्वराज झंडे को थामा। 1931 में कांग्रेस ने स्वराज झंडे को राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति प्रदान की।

राष्ट्रीय ध्वज
राष्ट्रीय ध्वज

भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना पिंगली वेंकैयानंद ने की थी। पहली बार भारतीय संविधान सभा की 22 जुलाई को आयोजित बैठक में तिरंगे (वर्तमान) अपनाया गया था। बाद 26 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाया गया।