हिमाचल चुनाव 2017: सोलन विधानसभा सीट पर जबरदस्त टक्कर, ससुर-दामाद आमने-सामने
देश और प्रदेश के विकास की राह क्षेत्र में लगे उद्योगों से होकर गुजरती है। उद्योग किसी भी राज्य के विकास की दिशा तय करने का मुद्दा रखते हैं।
नई दिल्ली:
देश और प्रदेश के विकास की राह क्षेत्र में लगे उद्योगों से होकर गुजरती है। उद्योग किसी भी राज्य के विकास की दिशा तय करने का मुद्दा रखते हैं।
हिमाचल प्रदेश के सोलन विधानसभा क्षेत्र में लगे कई उद्योगों के कारण इस शहर को हिमाचल का औद्यौगिक शहर कहा जाता है। औद्यौगिक शहर होने के कारण इस क्षेत्र की राजनीति प्रदेश की राजनीति पर खासा प्रभाव डालती है।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा सीट संख्या-53 सोलन विधानसभा। लोकसभा क्षेत्र शिमला और सोलन जिले के अंर्तगत आने वाली सोलन विधानसभा की कुल आबादी वर्तमान में 1,20,238 के आसपास है, जिसमें से इस बार 80,192 मतदाता अपने मतों का प्रयोग करेंगे।
सोलन को 'लाल सोने की घाटी' भी कहा जाता है। घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों से घिरे सोलन को सुंदर दृश्यों के लिए भी जाना जाता है। सोलन का प्रदेश की अर्थव्यवस्था में खासा योगदान है। राजनीतिक पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य से यह विधानसभा क्षेत्र अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
सोलन विधानसभा क्षेत्र में 1977 के बाद से अब तक हुए नौ विधानसभा चुनाव में चार बार भाजपा, चार बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी को जीत मिली है। आंकड़े बताते हैं कि यहां की जनता किसी पार्टी विशेष के बजाय क्षेत्रीय व्यक्तित्व पर भरोसा जताती है।
यही कारण है कि यहां पर कोई भी नेता दो बार से ज्यादा अपनी सीट नहीं बचा पाया है। चाहे वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजीव बिंदल हों या फिर कांग्रेस की कृष्णा मोहिनी।
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वर्तमान में सोलन विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस नेता और मौजूदा विधायक धनी राम शांडिल का कब्जा है। सेना से राजनीति में शामिल हुए धनीराम कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। धनीराम को कांग्रेस के कद्दावर दलित नेताओं में से एक माना जाता है। 77 वर्षीय धनीराम सेना के डोगरा रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस के बैनर तले 13वीं लोकसभा में शिमला लोकसभा से सांसद का चुनाव जीता था। अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने 14वीं लोकसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया।
2012 में कांग्रेस ने उन्हें सोलन विधानसभा से बतौर उम्मीदवार मैदान में उतारा और उन्होंने चुनाव जीतकर करीब एक दशक तक चले भाजपा के विजय रथ पर लगाम लगाई।
धनीराम के लगातार सफल प्र्दशन को देखकर कांग्रेस ने उन्हें दोबारा से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। धनीराम पर अपने विजयरथ को आगे बढ़ाने और कांग्रेस को इस क्षेत्र में मजबूत करने का दबाव रहेगा।
वहीं भाजपा ने राजेश कश्यप को धनीराम के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। पेशे से डॉक्टर भाजपा प्रत्याशी डॉ. राजेश कश्यप का मुकाबला अपने ही ससुर और कांग्रेस प्रत्याशी कर्नल धनीराम से है।
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कश्यप पिछले चुनावों में अपने ससुर के लिए वोट मांग रहे थे और आज उन्हीं के खिलाफ वोट मांगते नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि सोलन विधानसभा में दोनों उम्मीदवार एक-दूसरे की कमियां गिनाने के बजाय अपनी प्राथमिकताएं बताने में लगे हैं।
इसके साथ ही चुनाव मैदान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट के उम्मीदवार अजय भाटी और निर्दलीय उम्मीदवार शशिकांत चौहान मुख्य पार्टियों के खिलाफ अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं।
सोलन विधानसभा चुनाव का रण महाभारत की तरह एक ही परिवार में बंट गया है। एक तरफ ससुर, तो दूसरी तरफ दामाद। क्षेत्र के मतदाता और परिवार के लोग धर्मसंकट में हैं कि आखिर दोनों में से किसको जिताया जाए। दोनों दल क्षेत्रीय मुद्दे उठाए बिना चुनाव प्रचार कर रहे हैं, जिसके कारण जनता भी 'साइलेंट मोड' में चली गई है।
हिमाचल प्रदेश में चुनाव 9 नवंबर को होना है। वोटों की गिनती गुजरात चुनाव के बाद 18 दिसंबर को होगी।
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