logo-image

गुजरात चुनाव 2017: बीजेपी के लिये नहीं होगी राह आसान, युवा चेहरे बिगाड़ सकते हैं खेल

गुजरात विधानसभा चुनाव अब भी नरेंद्र मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी के ईर्द गिर्द ही घूम रहा है। लेकिन कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो गुजरात की राजनीति पर असर डालेंगे।

Updated on: 25 Oct 2017, 03:47 PM

नई दिल्ली:

गुजरात विधान सभा चुनाव पर अब पूरे देश की नजर है। राज्य की राजनीति में पिछले कुछ सालों में खासकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद काफी परिवर्तन हुए हैं। इसका एहसास बीजेपी को भी हो रहा है कि अब हालात पहले जैसे नहीं रहे हैं।

बीजेपी के नेता भी गुजरात चुनाव पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। हालांकि राज्य के विधानसभा चुनाव अब भी नरेंद्र मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी के ईर्द गिर्द ही घूम रहा है। लेकिन कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो गुजरात की राजनीति पर असर डालेंगे।

इनमें पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल, एकता मंच के अध्यक्ष अल्पेश ठाकोर और दलित आंदोलन के नेता जिग्नेश मेवानी के नाम प्रमुख तौर पर लिये जा सकते हैं।

हार्दिक पटेल

पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल ने पाटीदारों के लिये आरक्षण की मांग कर बीजेपी को संकट में डालते रहे हैं। हार्दिक पटेल ने बीजेपी को हराने का ऐलान किया है। इसके लिये वो कांग्रेस को पूरा समर्थन भी दे रहे हैं।

हार्दिक पटेल के समर्थन के बाद ही पाटीदार बहुल इलाकों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रैलियां खूब सफल भी हो रही हैं। हार्दिक पटेल और राहुल गांधी की मुलाकात के बाद समर्थन और चुनावी गणित का औपचारिक ऐलान किया जाएगा।

हार्दिक पटेल के गुजरात की राजनीति में अब एक जाना माना चेहरा है। गुजरात में पटेलों को एकजुट करने का श्रेय़ इन्हें जाता है। पटेलों के लिये ओबीसी कोटे में आरक्षण की मांग कर गुजरात सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के लिये सिरदर्द पैदा कर दिया था।

हालांकि हार्दिक पटेल को दलित विरोधी भी माना जाता है ऐसे में कांग्रेस के साथ उनका आना पार्टी के दलित वोटबैंक पर असर डाल सकता है।

अल्पेश ठाकोर

ओबीसी एससी एसटी एकता मंच के नेता अल्पेश ठाकुर गुजरात के चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि वो हार्दिक पटेल के उलट पाटीदारों को आरक्षण देने के खिलाफ हैं।

अल्पेश गुजरात सरकार के शराबबंदी के फैसले का समर्थन करते हैं। लेकिन बीजेपी सरकार के गुजरात के विकास के दावों को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि विकास की बात सिर्फ दिखावा है और राज्य में बेरोज़गारी बढ़ी है।

ठाकोर का उत्तर गुजरात में खासा प्रभाव है और उन्होंने शराबबंदी को लेकर काफी काम इस इलाके में किया है। युवा नेता होने के कारण उन्होंने वहां के विकास को लेकर काफी काम किया है और सरकार से भी यहां की समस्याएं उठाई हैं।

राज्य का ठाकोर समुदाय पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देता आ रहा है। ये समुदाय चाहता भी था कि अल्पेश कांग्रेस के साथ ही जाएं। अल्पेश ने अपने समुदाय की मंशा को समझ लिया और कांग्रेस के साथ हो लिये। जाहिर तौर पर इनके जाने से कांग्रेस को फायदा होगा।

जिग्नेश मेवाणी

गुजरात में चुनावों के दौरान एक युवा चेहरा है जो राज्य के चुनावों को प्रभावित कर सकता है। मेवाणी गुजरात में दलित आंदोलन का एक बड़ा चेहरा हैं। जिग्नेश राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच का संयोजक होने के साथ ही एक सामाजिक कार्यकर्ता और वकील भी हैं।

मेवाणी का नाम उस समय सुर्खियों में आया जब ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई की गई थी। इस हिंसा के खिलाफ राज्य में हुए आंदोलन की अगुवाई जिग्नेश मेवाणी ने किया।

मेवाणी ने 'आजादी कूच आंदोलन' कर करीब 20 हजार दलितों को शपथ दिलाई थी कि वो अब मरे जानवर नहीं उठाएंगे और मैला भी नहीं ढोएंगे। उस समय उन्होंने सरकार से दलितों के लिये दूसरे काम देने की मांग भी की थी।

इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने वाले कई और नेता भी हैं। लेकिन इस तीनों नेताओं में एक खास बात यह हैं कि तीनों युवा हैं और अपने समाज को प्रभावित करते हैं।

जाहिर है कि गुजरात चुनाव बजेपी के लिये इतना आसान नहीं होगा और न ही पहले की तरह होगा। पहले के चुनावों में लड़ाई सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के बीच थी। लेकिन इस बार चुनावों को प्रभावित करने के कई कारण मौजूद हैं।

इसके अलावा खुद नरेंद्र मोदी राज्य की राजनीति से दूर देश की राजनीति में हैं। इधर आनंनदीबेन पटेल भी नाराज़ चल रही हैं। इसका भी प्रभाव चुनावों पर पड़ सकता है।