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एक फकीर जिसने उठाई रंगभेद के खिलाफ आवाज

1983 में गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका से सेठ अब्दुल्ला ने एक मुकदमा लड़ने के लिए बुला लिया। यहीं से शुरू हुई उनकी दक्षिण अफ्रीका यात्रा।

Updated on: 02 Oct 2017, 08:18 AM

नई दिल्ली:

महात्मा गांधी ने राजकोट में वकालत कर रहे थे। 1983 में गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका से सेठ अब्दुल्ला ने एक मुकदमा लड़ने के लिए बुला लिया। यहीं से शुरू हुई उनकी दक्षिण अफ्रीका यात्रा। दक्षिण अफ्रीका यात्रा के दौरान गांधी जी को कई तरह की अवहेलना झेलनी पड़ी। उन्होंने साउथ अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई।

सेठ अब्दुल्ला के बुलावे पर गांधी जी पानी के जहाज पर सवार होकर दक्षिण अफ्रीका के डरबन पहुंचे। यहां से 7 जून 1893 को उन्होंने प्रीटोरिया जाने के लिए ट्रेन पकड़ी।

गांधी जी के पास फ्रस्ट क्लास का टिकट था लेकिन जब ट्रेन पीटरमारिट्जबर्ग पहुंचने वाली थी तो उन्हें थर्ड क्लास वाले डिब्बे में जाने के लिए कहा गया। जब लेकिन गांधी जी ने इससे इनकार किया तो उन्हें जबरदस्ती पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से धक्का देकर उतार दिया।

इस घटना से गांधी जी को बहुत बड़ा झटका लगा। इसी घटना ने उन्हें सत्याग्रह करने को प्रेरित किया। 7 जून 1893 की उस रात दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग में गांधी जी के सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी। गांधी जी को उस समय नहीं पता था उनका यही हथियार कभी भारत की आजादी का रास्ता भी खोलेगा।

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ट्रेन के अलावा भी उन्हें साउथ अफ्रीका में कई बार भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार घोड़ागाड़ी में अंग्रेज यात्री के लिए सीट नहीं छोड़ने पर उन्हें पायदान पर यात्रा करनी पड़ी और चालक की मार भी झेलनी पड़ी।

उन्होने 1894 में नेटाल इंडियन कांग्रेस की मदद ली और इस संगठन के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में रह रहें भारतीयों को एकीकृत किया एवं राजनैतिक बल के रूप में संगठित किया । भेदभाव के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका से ही शांत एवं शर्मिले गांधीजी एक मजबूत शक्तिशाली नेता के रूप में उभरें ।

मुकदमें की तैयारी के साथ गांधी जी भारतीयों से सम्पर्क बनाने लगे। भारतीयों को वहाँ कुली कह कर बुलाया जाता था। उन्हें कुली बैरिस्टर व्यापारियों को कुली व्यापारी कहा जाता था।

गाँधी जी ने सभी भारतीयों की सभा बुलाई और आपस के मतभेद भुला कर मिल कर रहने का सन्देश दिया। इस प्रकार वह सभी भारतीयों को साथ लाने में सफल रहे

गाँधी जी ने 22 मई 1894 में नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की साथ ही इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया। इंडियन कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य, अफ्रीका में जन्मे और शिक्षा पाए भारतीयों की सेवा करना और उनकी दशा सुधारना था। गाँधी जी के सम्पूर्ण प्रयास अफ्रीका के शोषित-पीड़ित भारतीय जनों को सहारा देने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिये समर्पित हो गए।

इसी बीच उन्होंने यहाँ रह कर कई धर्मों के धर्म ग्रंथों का अध्ययन भी किया। साथ ही फीनिक्स आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम में आश्रमवासी बच्चों के लिए पाठशाला खोली।

अफ्रीका में भारतीय मजदूरों को 5 साल के एग्रीमेंट पर बुलाया जाता था। इसके बाद वह भारत लौट सकते थे या वहां स्वतंत्र व्यवसाय अथवा खेती कर सकते थे। एग्रीमेंट शब्द बिगड़ कर गिरमिटिया बन गया था इसलिए एग्रीमेंट पर जाने वाले भारतीयों को अफ्रीका में गिरमिटिया कहा जाता था।

1906 जुलू विद्रोह- दक्षिण अफ्रीका की जुलुओ को सीदा सदा माना जाता था इनकी पहाड़ों और घाटियों में झोपड़िया थी | जुलू में नये कानून के विरोध में दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला बदले में अंग्रेजों ने जुलुओ के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया गाँधी जी ने इनके विरुद्ध भारतीयों की सेना में भरती के लिए अंग्रेजों को प्रेरित किया।

दक्षिणी अफ्रीका में अपने निवास की अवधि के बीच उन्होंने अनेक कानूनों का विरोध किया। एक कानून द्वारा व्यस्क भारतियों को चालीस रूपये वार्षिक कर के रूप में अदा करने पड़ते थे । एक अन्य कानून बनाया गया हर भारतीय का विवाह नजायज करार दे दिया गया। यह भारतीय संस्कृति का घोर अपमान था।

ब्लैक एक्ट द्वारा प्रत्येक भारतीय को हमेशा अपने पास अपनी दसों उँगलियों के निशान वाला एक प्रमाण पत्र रखना पड़ता था उँगलियों के निशान ज्यादातर मुजरिमों के लिए जाते थे इस काले कानून के विरोध में अनेक जन सभायें की अनेक पत्र लिख कर भेजे ,स्वयं अधिकारियों से मिले समाचार पत्रों में लेख लिखे लेकिन कोई असर नहीं हुआ तब उन्होंने सत्याग्रह अन्याय का अहिंसात्मक प्रतिरोध किया।

उन्होंने अपने सहयोगियों से खा आप लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हो जायें। उँगलियों की छाप न दें जेल जायें लेकिन इस काले कानून के आगे सिर न झुकायें उन्होंने कहा आप अन्याय का विरोध करें मृत्यु का भय छोड़ दें मेरे ऊपर निर्भर न रहें जो कार्यक्रम बनाया है उसे समझ कर अमल करें।

इन सभी आंदोलनों के बाद गांधी ने भारत लौटने का निश्चय किया। साउथ प्रवासी भारतीयों को लगा कि अब वह नेता विहीन हो जाएँगे इस पर उन्होंने आश्वासन दिया जब भी उन्हें उनकी जरूरत महसूस होगी वह उनके पास दक्षिण अफ्रीका लौट आयेंगे।