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गिरती अर्थव्यवस्था पर चिंतित यशवंत सिन्हा का मोदी सरकार पर निशाना, बोले- अब चुप बैठना मुश्किल

पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए कहा है कि अब समय आ गया है उन्हें बोलना पड़ेगा।

Updated on: 27 Sep 2017, 01:50 PM

नई दिल्ली:

पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए कहा है कि अब समय आ गया है उन्हें बोलना पड़ेगा। पूर्व वित्त मंत्री ने यह बातें अपने एक लेख में इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के लिए लिखी है।

उन्होंने कहा है कि, 'वित्त मंत्री द्वारा अर्थव्यवस्था को चौपट होता देख अगर वो अब भी चुप बैठे तो यह नागरिक कर्तव्यों से पीछे हटना होगा।'

'मैं जानता हूं कि मैं जो कहने जा रहा हूं वो पार्टी के ज़्यादातर लोगों की संवेदनाओं को चोट करेगा जो पार्टी के लिए खुल कर बोलने से डरे हुए हैं।'

वित्त मंत्री अरुण जेटली के बारे में उन्होंने लिखा है, 'अरुण जेटली को इस सरकार में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और यह पहले से ही तय माना गया था कि 2014 में बीजेपी की सरकार में वित्त मंत्री अरुण जेटली ही होंगे।'

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वित्त मंत्री अरुण जेटली पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने लिखा है, 'उनकी काबिलियत इस बात से ही ज़ाहिर होती है कि पीएम मोदी ने उन्हें वित्त मंत्रालय के साथ विनिवेश और यहां तक की रक्षा मंत्रालय और कॉरपोर्ट्स अफेयर्स की भी ज़िम्मेदारी सौंपी थी।'

यशवंत सिन्हा जो कि पूर्व में बीजेपी की ही सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं, उन्होंने लेख में लिखा है कि, 'क्योंकि मैं जानता हूं कि वित्त मंत्रालय का काम कितना जटिल और मुश्किल है कि यह 24/7 का काम है जाहिर तौर पर यह 'सुपरमैन' अरुण जेटली के लिए भी मुश्किल रहा होगा।'

यशवंत सिन्हा ने तेल के बढ़ते दामों और बैंकों के बढ़ते एनपीए पर चिंता जताते हुए कहा है कि इन परेशानियों को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था। 

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यशवंत सिन्हा ने लिखा है आज निजी निवेश घट गया है जोकि पिछले दो दशकों में इतना कम कभी नहीं रहा। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन लगभग बिल्कुल ख़त्म सा हो गया है, कृषि क्षेत्र संकट में है, निर्माण क्षेत्र, रोजगार, सेवा क्षेत्र संकट में है, निर्यात ठप हो रहे हैं, और सभी क्षेत्र डूबते जा रहे हैं।

नोटबंदी एक निरंतर आर्थिक आपदा साबित हुई है, जिसे बुरी प्रकार लाया गया और बेहद ख़राब तरह से लागू किया गया।

जीएसटी पर उन्होंने लिखा है कि जीएसटी ने कारोबारियों के मन में डर पैदा किया जिससे ज़्यादातर कारोबार ख़त्म हो गए और श्रम क्षेत्र में लाखों नौकरियां बिना किसी और रोजगार के अभाव के बीच में खत्म हो गईं।

तिमाही दर तिमाही, अर्थव्यवस्था की दर गिरती गई और घटकर वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लुढ़ककर 5.7 फीसदी तक आ गई, जोकि बीते 3 सालों में अब तक सबसे कम है। 

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वो लिखते हैं, 'सरकार के प्रवक्ता कहते हैं कि नोटबंदी इसके लिए ज़िम्मेदारी नहीं है। वो सही हैं, यह घोषणा पहले ही होनी चाहिए थी। नोटबंदी ने तो सिर्फ आग में घी डाला है।'

इसके अलावा उन्होंने यह याद दिलाने की कोशिश कि है कि मौजूदा सरकार ने साल 2015 में जीडीपी की गणना पद्धति में बदलाव किए थे, जिसके मुताबिक जो ग्रोथ दर दर्ज की जाती है उसमें सालाना स्तर पर आधार अंकों पर 200 अंकों से ज़्यादा की बढ़त हो जाती है। तो पुरानी गणना पद्दति के हिसाब से दर्ज की गई 5.7 फीसदी की विकास दर दरअसल 3.7 फीसदी या उससे कम है।

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