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RSS के कार्यक्रम में शामिल होने पर प्रणव मुखर्जी ने तोड़ी चुप्पी, कहा-नागपुर से ही दूंगा जवाब

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यक्रम में जाने का न्योता स्वीकार करने के बाद कांग्रेस और अन्य दलों के निशाने पर आए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अब इस पर चुप्पी तोड़ी है।

Updated on: 02 Jun 2018, 05:43 PM

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यक्रम में जाने का न्योता स्वीकार करने के बाद कांग्रेस और अन्य दलों के निशाने पर आए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अब इस पर चुप्पी तोड़ी है।

पश्चिम बंगाल के बड़े अखबारों मे शुमार आनंद बाजार पत्रिका को दिए इंटरव्यू में प्रणब मुखर्जी ने कहा वह लोगों के ऐसे सभी सवालों का जवाब नागपुर में मंच से ही देंगे।

आनंद बाजार पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में प्रणव मुखर्जी ने कहा, 'जो कुछ भी मुझे कहना है, मैं नागपुर में कहूंगा। मुझे कई पत्र आए और कई लोगों ने फोन किया, लेकिन मैंने किसी का जवाब नहीं दिया है।'

बता दें कि जयराम रमेश और सीके जाफर सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रणव मुखर्जी को खत लिखकर कार्यक्रम में जाने के फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा था।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बताया था कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति को खत लिखकर सलाह दी थी कि उन जैसे विद्वान और सेक्युलर व्यक्ति को आरएसएस के साथ किसी तरह की नजदीकी नहीं दिखानी चाहिए।

कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर आनंद बाजार पत्रिका से बातचीत के दौरान जयराम रमेश ने कहा था, 'अचानक ऐसा क्या हुआ कि प्रणव मुखर्जी जैसे महान नेता, जिन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया, अब आरएसएस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर जाएंगे।'

वहीं यूपीए कार्यकाल में मंत्री रहे चिदंबरम ने कहा था, 'जब उन्होंने न्योते को स्वीकार कर लिया है तो इस पर बहस का कोई मतलब नहीं बच जाता है। अब सवाल यह नहीं है कि उन्होंने क्यों स्वीकार किया। उससे ज्यादा अहम बात यह है कि आपने न्योते को स्वीकार किया है तो वहां जाइए और उन्हें बताइए कि उनकी विचारधारा में क्या खामी है।'

न्योता स्वीकार करने के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था, 'प्रणव मुखर्जी का RSS का आमंत्रण स्वीकार करना एक अच्छी पहल है। राजनीतिक छुआछूत अच्छी बात नहीं है।'

बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस के हेडक्वॉर्टर नागपुर में होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम के समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचने का न्योता स्वीकार किया था जिसके बाद राजनीतिक जगत में भूचाल आ गया था।

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