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चारा घोटाला: लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा पर फैसला आज, जानें कब क्या हुआ

चारा घोटाला मामले में आज बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा के भाग्य का फैसला होगा।

Updated on: 23 Dec 2017, 07:51 AM

highlights

  • चारा घोटाला में फैसला आज, लालू यादव, जग्गनाथ मिश्रा समेत 22 हैं आरोपी
  • चारा घोटाले के एक मामले में लालू हैं दोषी, पा चुके हैं पांच साल के कारावास की सजा
  • इस मामले में दस वर्ष तक जेल या आजीवन कारावास की भी सजा हो सकती है

नई दिल्ली:

चारा घोटाला मामले में आज बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा के भाग्य का फैसला होगा।

रांची स्थित विशेष अदालत इस मामले में देवघर जिला राजकोष से फर्जी रूप से 84.5 लाख रुपये निकालने के लिए आरसी 64ए/96 के तहत फैसला सुनाएगी।

इस मामले में 34 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है और वहीं एक सीबीआई गवाह बन गया। पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआई के विशेष न्यायधीश शिवपाल सिंह ने अभियुक्तों को अदालत में उपस्थित रहने के आदेश दिए थे।

लालू प्रसाद व मिश्रा पहले से ही चारा घोटाले के एक अन्य मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं और दोनों जमानत पर बाहर हैं।

सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि इस मामले में गबन की धारा 409 में दस वर्ष तक की और धारा 467 के तहत आजीवन कारावास की भी सजा हो सकती है।

सीबीआई कोर्ट के फैसले से पहले लालू प्रसाद यादव ने विश्वास जताया की वह बरी होंगे। रांची में उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'हमें देश की न्याय व्यवस्था पर पूरा विश्वास है और हम उसका सम्मान करते हैं। जैसा 2G में हुआ, अशोक चव्हाण का हुआ, वैसा ही हमारा भी होगा।'

क्या है चारा घोटाला?
सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपये की निकासी की 'कहानी' को 'चारा घाटोला' नाम दिया गया। पशुओं के चारे के लिए रखे धन की बंदरबांट कई राजनेता, बड़े नौकरशाह और फर्जी कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं ने मिलकर सुनियोजित तरीके से की थी।

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चारा घोटाले पर गौर करें तो वर्ष 1993-94 में पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने सबसे पहले चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी से जुड़े मामले को उजागर किया था और इसकी एक प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश किया था।

इसके बाद बिहार पुलिस (तब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था) गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदग्गा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए।

इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कई नेताओं द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की गई।

कोर्ट में लोकहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा न कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।

इस क्रम में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि जब इस मामले में बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी आरोपी हैं, तो पुलिस जांच का क्या औचित्य है? कोर्ट ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी थी।

लालू को गंवानी पड़ी थी CM की कुर्सी

इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश पर निगरानी में जांच शुरू हुई थी। वर्ष 1996 में चारा घोटाला पूरी तरह सबके सामने आ गया और लालू प्रसाद की मुश्किलें बढ़ने लगीं।

इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल जाना पड़ा था। जिसके बाद लालू यादव ने पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की कमान सौंपी थी।

कौन कौन हैं आरोपी?

चारा घोटाले के मामले में बिहार और झारखंड के अलग-अलग जिलों में कुल 53 मामले दर्ज कराए गए थे, इसमें राज्य के दिग्गज नेताओं अैर अधिकारियों सहित करीब 500 लोगों को आरोपी बनाया गया।

इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, भोलाराम तूफानी, विद्यासागर निषाद सहित कई अन्य मंत्रियों पर मामले दर्ज हुए थे।

इस मामले में सबसे पहले बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने 31 जनवरी, 1996 को आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।

सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के एक मामले में लालू को दोषी करार देते हुए तीन अक्टूबर, 2013 को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में दिसंबर, 2013 में उन्हें अदालत से जमानत भी मिल गई थी।

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