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अयोध्या विवाद के 25 साल, विकास के मोर्चे पर पिछड़ी 'राम' की नगरी

हाल ही में मुझे एक बार फिर अयोध्या जाने का मौका मिला। अयोध्या के विवादित मामले पर पक्षकारों से बात की। जनता की बात को समझने की कोशिश की

Updated on: 05 Dec 2017, 11:27 PM

नई दिल्ली:

हाल ही में मुझे एक बार फिर अयोध्या जाने का मौका मिला। अयोध्या के विवादित मामले पर पक्षकारों से बात की। जनता की बात को समझने की कोशिश की। वजह ख़ास थी।

6 दिसंबर 1992 को जो कुछ अयोध्या ने देखा था, उसके 25 साल पूरे हो रहे हैं! इसके साथ ही 5 दिसंबर से मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है। हालांकिं सुनवाई अब 8 फरवरी तक के लिए टल चुकी है, लेकिन उम्मीदें कहीं ज्यादा हैं। इस बीच अयोध्या के मन की बात क्या है? समझना ये भी जरूरी है।

हर साल बंदी झेलता है अयोध्या!

6 दिसंबर 1992...वो दिन जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया गया। इसके बाद ना सिर्फ सूबे की बल्कि पूरे मुल्क की सियासत बदली, लेकिन इस बीच अयोध्या के नसीब में आई तो सिर्फ बदहाली और उपेक्षा। हर बार की तरह इस बार भी 6 दिसंबर के मौके पर शहर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। इसके कारण स्थानीय लोगों को बार—बार सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। बाजार में अघोषित बंदी जैसे हालात होते हैं। इस सबके कारण आम अयोध्यावासी बस यही दुआ करता है कि 6 दिसंबर शांति से बीते!

विकास में पीछे छूटा अयोध्या!

यूं तो सूबे की राजधानी से अयोध्या की दूरी बामुश्किल 150 किलोमीटर है! दो से तीन घंटे का सफर, लेकिन विकास के मामले में रामनगरी दशकों पीछे है। कोई बड़ा उद्योग-धंधा नहीं, रोजगार का कोई बड़ा ज़रिया नहीं! पर्यटन के लिहाज से भी राम के अयोध्या में उतनी संभावना नजर नहीं आती, जितनी कृष्णनगरी मथुरा में है! अयोध्या में ठहरा हुआ विकास साफ महसूस होता है। मानों अयोध्या की बदकिस्मती है कि उसका नाम 'अयोध्या' है! जन्मभूमि विवाद बीते 25 सालों में विकास के मोर्चे पर शहर को काफी पीछे छोड़ चुका है।

सालों से जारी है अदालती लड़ाई
मुल्क को मिली आजादी से पहले ही अयोध्या पर घमासान जारी है। सालों नहीं बल्कि दशकों से मामले पर अदालती फैसले का इंतजार है। इतना लंबा इंतजार करता शायद ये देश का इकलौता मामला हो! जाहिर है जो काम अब तक अदालतें नहीं कर सकीं वो बातचीत से हो जाएगा इसकी उम्मीद भी कम ही नजर आती है।

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श्रीश्री रविशंकर की ताजा पहल पर उठे विवाद के बाद तो आशंका और पुख्ता हो चली है। वैसे बातचीत की कोशिशें पहले भी लगातार होती रही हैं। केन्द्र के स्तर पर 'अयोध्या सेल' बनाए गए, लेकिन सियासत क्या ना करवाए। नतीजा सुनने को मानों कोई तैयार नहीं।

इस बीच अयोध्या का विकास कहीं ठहरा हुआ है। अयोध्या निवासी साफ तौर पर मानते हैं कि नेताओं और धर्मगुरूओं ने विवाद सुलझाने की बजाय उलझाने का ज्यादा काम किया है और इस बीच शहर के तौर पर अयोध्या का विकास पटरी से उतरता रहा है।

उम्मीद है बदलते वक्त में माननीय गंभीर हो सकेंगे और शहर के तौर पर अयोध्या के हालात सुधर सकेंगे। मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के विकास को अपने एंजेडे में रखा है। देखना होगा हालात कितने सुधर पाते हैं!

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