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एसएलई रोग पुरुषों में कम, महिलाओं में ज्यादा

भारत में हर 10 लाख लोगों में करीब 30 लोग सिस्टेमिक ल्यूपूस एरीथेमेटोसस (एसएलई) रोग से पीड़ित पाए जाते हैं।

Updated on: 18 Oct 2017, 11:50 PM

नई दिल्ली:

भारत में हर 10 लाख लोगों में करीब 30 लोग सिस्टेमिक ल्यूपूस एरीथेमेटोसस (एसएलई) रोग से पीड़ित पाए जाते हैं। महिलाओं में यह समस्या अधिक पाई जाती है। इस रोग से पीड़ित 10 महिलाओं के पीछे एक पुरुष ल्यूपस से पीड़ित मिलेगा। एसएलई को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जागरूकता की कमी के कारण, अक्सर चार साल बाद लोग इसके इलाज के बारे में सोचते हैं। 

एसएसई एक पुरानी आटोइम्यून बीमारी है। इसके दो फेज होते हैं- अत्यधिक सक्रिय और निष्क्रिय। ल्यूपस रोग में हृदय, फेफड़े, गुर्दे और मस्तिष्क प्रभावित होते हैं और जीवन को खतरा पैदा हो जाता है। ल्यूपस पीड़ितों को अवसाद या डिप्रेशन होने का खतरा बना रहता है। 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, 'एसएलई एक ऑटोइम्यून रोग है। प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रामक एजेंटों, बैक्टीरिया और विदेशी रोगाणुओं से लड़ने के लिए बनी है। इसके काम करने का तरीका है एंटीबॉडीज बना कर संक्रामक रोगाणुओं से मुकाबला करना। ल्यूपस वाले लोगों के खून में ऑटोएंटीबॉडीज बनने लगती हैं, जो विदेशी संक्रामक एजेंटों के बजाय शरीर के स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर हमला करने लगती हैं।'

डॉ. अग्रवाल ने कहा, 'हालांकि, असामान्य आत्मरक्षा के सही कारण तो अज्ञात हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह जीन और पर्यावरणीय कारकों का मिश्रण हो सकता है। सूरज की रोशनी, संक्रमण और कुछ दवाएं जैसे कि मिर्गी की दवाएं इस रोग में ट्रिगर की भूमिका निभा सकती हैं।'

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उन्होंने कहा, "ल्यूपस के लक्षण समय के साथ बदल सकते हैं, लेकिन आम लक्षणों में थकावट, जोड़ों में दर्द और सूजन, सिरदर्द, गाल व नाक, त्वचा पर चकत्ते, बालों का झड़ना, खून की कमी, रक्त के थक्के और उंगलियों व पैर के अंगूठे में रक्त न पहुंच पाना प्रमुख हैं। शरीर के किसी भी हिस्से पर तितली के आकार के दाने उभर आते हैं।" 

एसएलई के लक्षणों से निपटने के कुछ उपाय :

* चिकित्सक के निरंतर संपर्क में रहें। पारिवारिक सहायता प्राप्त करना भी महत्वपूर्ण है।

* डॉक्टर की बताई सभी दवाएं लें। नियमित रूप से अपने चिकित्सक के पास जाएं और आपकी देखभाल ठीक से करें। 

* सक्रिय रहें, इससे जोड़ों को लचीला रखने और हृदय संबंधी जटिलताओं को रोकने में मदद मिलेगी।

* तेज धूप से बचें। पराबैंगनी किरणों के कारण त्वचा में जलन हो सकती है।

* धूम्रपान से बचें और तनाव व थकान को कम करने की कोशिश करें।

* शरीर का वजन और हड्डी का घनत्व सामान्य स्तर पर बनाए रखें।

* ल्यूपस पीड़ित युवा महिलाओं को उचित समय पर गर्भधारण करना चाहिए। ध्यान रखें कि उस समय आपको ल्यूपस की परेशानी नहीं होनी चाहिए। गर्भधारण के दौरान सावधान रहें। नुकसानदायक दवाओं से परहेज करें।

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