आर्थराइटिस पर भी मिल सकता है बीमा का लाभ
देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में आर्थराइटिस यानि गठिया बीमारी को नॉन कम्युनिकेबल डिजीज में शामिल करने की मांग उठी है। आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है,जिससे देश के लगभग 18 फीसदी लोग पीड़ित हैं। लेकिन अब तक इसे सरकार ने नॉन कम्युनिकेबल डिजीज में शामिल नहीं किया है।
नई दिल्ली:
देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में आर्थराइटिस यानि गठिया बीमारी को नॉन कम्युनिकेबल डिजीज में शामिल करने की मांग उठी है। आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है,जिससे देश के लगभग 18 फीसदी लोग पीड़ित हैं। लेकिन अब तक इसे सरकार ने नॉन कम्युनिकेबल डिजीज में शामिल नहीं किया है।
एम्स रूमेटिक डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. उमा कुमार का कहना है कि इनमें बड़ी संख्या में ऐसे मरीज हैं, जो चल-फिर नहीं सकते हैं, उनके जोड़ों में असहनीय दर्द और सूजन रहता है। दवाएं महंगी होने की वजह से इलाज का खर्च एम्स जैसे संस्थान में भी कम नहीं है। ऐसे में आर्थराइटिस के नॉन कम्युनिकेबल डिजीज की श्रेणी में न होने से मरीज को बीमा और रिइम्बर्समेंट नहीं मिल पाता है। दवा की अनियंत्रित कीमतों का असर सीधा मरीज की जेब पर पड़ता है, तो वहीं बीमारी के बावजूद मरीज को रेल सफर में सुरक्षित सीट और टिकट में रियायत का लाभ नहीं मिलता।
आपको बता दें कि देश भर में आर्थराइटिस के इलाज की हालत भी कम बदतर नहीं है, क्योंकि इस बीमारी के विशेषज्ञों की संख्या बेहद कम है। ऐसे में मरीजों को फिजीशियन पर इलाज के लिए ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है।
आर्थराइटिस को लेकर सरकार ने अभी तक कोई देशव्यापी सर्वे नहीं किया है, जिससे आम लोगों को राहत मिल सके।इन्फ्लामेट्री आर्थराइटिस किसी भी उम्र में होने वाली बीमारी है, जिसका समुचित इलाज न होने पर मरीज को पूर्ण विकलांग होने का खतरा भी रहता है। आर्थराइटिस के चलते मरीज में हाइपरटेंशन, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, प्रीमैच्योर अथेरोस्क्लेरोसिस और सरेबरोवस्क्युलर एक्सीडेंट्स का खतरा भी बढ़ जाता है, जिससे मरीज की असमय मौत तक हो सकती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ये बीमारी ज्यादा होती है।
एम्स में जनवरी 2015 से लेकर सितंबर 2015 तक के आंकड़े के मुताबिक, 24,000 मरीज रूमेटिक डिसऑर्डर के आये हैं, जिसमें से हर चौथा मरीज नया था। देश के सबसे बड़े संस्थान में मरीजों की बढ़ती भीड़ के कारण अब ओपीडी में वेटिंग 12 से 16 हफ्ते की हो चुकी है।
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