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बच्चों की दिमागी सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन स्मॉग, UNICEF की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

स्मॉग की जहरीली चादर न सिर्फ बच्चों की सेहत बल्कि दिमाग को भी हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा सकती है।

Updated on: 06 Dec 2017, 01:58 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण खतरे का सबब बनता जा रहा है स्मॉग की जहरीली चादर न सिर्फ बच्चों की सेहत बल्कि दिमाग को भी हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा सकती है

हाल ही में आई यूनिसेफ की रिपोर्ट में यह चौंका देने वाला खुलासा हुआ है रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण बढ़ते बच्चों के दिमाग को हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा सकता है।

इस समय प्रदूषण से राजधानी और आस-पास के इलाके बुरी तरह से प्रभावित है हालत की गंभीरता देखते हुए सरकार ने स्कूल बंद करने तक का फैसला किया था

यूनिसेफ की 'डेंजर इन द एयर' नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक साउथ एशिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में बच्चे सबसे ज्यादा है जो कि इस जहरीली हवा में सांस ले रहे है

एक और चौंका देने वाली बात यह भी है कि इस इलाके में दुनिया के किसी इलाके से 6 गुणा ज्यादा प्रदूषण है

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पूरे विश्व में 1 साल से कम उम्र के लगभग 1 करोड़ 70 लाख से ज्यादा बच्चे सबसे प्रदूषित इलाकों में जी रहे हैं। साउथ एशिया में ही 1 करोड़ 22 लाख बच्चे हैं।

पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 43 लाख बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है

रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित हवा में मौजूद पार्टिकुलर मैटर ब्लड-ब्रेन मैंब्रेन को नुकसान पहुंचाता है। यह एक पतली सी झिल्ली होती है जो दिमाग को जहरीले पदार्थों से बचाती है।

इसमें नुकसान पहुंचने से दिमाग में सूजन आने का खतरा रहता है

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यूनिसेफ के एक्जिक्युटिव डायरेक्टर ऐंथनी लेक ने कहा, 'प्रदूषण से केवल बच्चों के फेंफड़े ही नहीं बल्कि हमेशा के लिए उनका बढ़ता हुआ दिमाग डैमेज हो सकता है जिससे उनका भविष्य भी बर्बाद हो सकता है।'

रिसर्च में यह भी कहा गया कि प्रदूषण के कारण जन्म से पहले तीन साल तक बच्चे का विकास रुक भी सकता है। इससे बाद में बच्चे में मनोवैज्ञानिक और व्यवहार संबंधी विकार आ सकते हैं।

एक अध्ययन के मुताबिक जहरीली हवा में सांस लेने वाले बच्चों का आईक्यू लेवल 5 में से 4 पॉइंट तक गिर सकता है। बच्चों का दिमाग ज्यादा संवेदनशील होता है जिसके कारण प्रदूषण से उन्हें नुकसान पहुंच सकता है।

बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं जिसके कारण उनकी रोग से लड़ने की क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं होती है।

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