बीजेपी Vs कांग्रेस का हिंदुत्व कार्ड, क्या लग पाएगा राहुल गांधी का बेड़ा पार
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे आने में महज कुछ घंटों का वक्त बचा है लेकिन पूरे देश की नजर इस बार गुजरात के चुनाव परिणाम पर है।
highlights
- गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने अपनाई बीजेपी की हिंदुत्व रणनीति
- 45 दिनों के दौरे में राहुल गांधी ने 20 से ज्यादा मंदिरों का किया दौरा
New Delhi:
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे आने में महज कुछ घंटों का वक्त बचा है लेकिन पूरे देश की नजर इस बार गुजरात के चुनाव परिणाम पर है।
राज्य में 22 सालों से सत्ता पर कब्जा जमाए बैठी बीजेपी को इस बार कांग्रेस के नए नवेले अध्यक्ष राहुल गांधी ने उसी भाषा में जवाब देने की कोशिश की है जिसके जरिए कभी 2 सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आज देश की सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी बनी बैठी है। वो जरिया और आधार है बीजेपी का हिन्दुत्व कार्ड।
एक कहावत है कि लोहे को लोहा ही काटता है। ठीक वैसे ही राहुल गांधी की अगुवाई में पहली बार कांग्रेस अपनी मूल अवधारणा से अलग हटकर प्रो हिन्दुत्व के एजेंडे पर गुजरात चुनाव लड़ रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के अपने 45 दिनों के कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने करीब 20 मंदिर के चक्कर लगाए।
आमतौर पर कांग्रेस खुद को धर्म निरपेक्ष पार्टी बताती हुई मंदिर और मस्जिद जाने से अबतक परहेज ही करती नजर आती थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीते तीन सालों में कई राज्यों में सत्ता खोने की वजह से कांग्रेस को भी वो रणनीति अपनानी पड़ी जिसके जरिए बीजेपी देश की बहुसंख्य हिन्दुओं को अपने पाले में लाकर केंद्र सहित देश के अधिकांश हिस्सों पर राज कर रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 28 सितंबर को सौराष्ट्र के पांच मंदिरों में दर्शन से गुजरात में चुनावी बिगुल फूंका था और प्रचार करने के लिए उतरे थे। अपने 45 दिनों के दौरे के दौरान राहुल गांधी ने शुरुआती चरण में द्वारकाधीश मंदिर, कागवाड में खोडलधाम मंदिर, विरपुर के जलाराम मंदिर, राजकोट में दासी मंदिर गए और वहां मत्था टेका था।
इसके बाद राहुल गांधी ने दूसरे और तीसरे चरण के प्रचार अभियान के दौरान विश्व प्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर भी गए और सोमनाथ मंदिर में भी पूजा-अर्चना करते नजर आए।
30 नवंबर को सोमनाथ मंदिर में दर्शन के बाद गैर हिंदू रजिस्टर पर राहुल गांधी के हस्क्षातर से वहां बड़ा सियासी बवाल मच गया। बीजेपी ने जहां इसे राहुल गांधी की सच्चाई बता दी वहीं कांग्रेस ने तुरंत आकर उनका बचाव किया और इसे बीजेपी की साजिश बताई।
कांग्रेस ने राहुल गांधी के मूल रूप में हिंदू होने के कई साक्ष्य तुरंत पेश कर दिए और उन्हें जनेऊधारी हिंदू बता दिया ताकि चुनाव में इसका खामियाजा ना उठाना पड़े।
कांग्रेस ने अपने दावों को मजबूत करने के लिए राहुल गांधी की जनेऊ पहने कई तस्वीरें जारी कर दी और उन्हें पूजा-पाठ करते हुए भी दिखाया।
राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर जाने पर पीएम मोदी ने एक चुनावी रैली में तंज कसा की वो जिस मंदिर में गए थे वो उनके नाना जवाहर लाल नेहरू ने नहीं बल्कि गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाई थी।
दरअसल आजादी के बाद जूनागढ़ के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान में अपनी रियासत के विलय का फैसला किया था जिसे भारत ने मानने से इनकार कर दिया। उस वक्त उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभ पटेल ने उस इलाके में शांति स्थापित करने का काम सेना को सौंपा और वहां सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण का आदेश दिया।
उस वक्त नेहरू सरकार में खाद्य मंत्री रहे केएम मुंशी की निमंत्रण पर साल 1951 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर पहुंचे थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को वहां नहीं जाने की सलाह दी। नेहरू का मानना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और राष्ट्रपति के किसी मंदिर में जाने से समाज के एक तबके में गलत संदेश जाएगा। हालांकि राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उनकी सलाह नहीं मानी और उन्होंने मंदिर का दौरा किया।
पीएम नेहरू ने उस वक्त सोमनाथ मंदिर के निर्माण से खुद को दूर रखा और सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर मंदिर निर्माण में सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं करने को कहा। शायद यही वजह रही की राहुल गांधी का सोमनाथ मंदिर जाना बीजेपी को नागवार गुजरा और पीएम मोदी ने राहुल को निशाने पर ले लिया।
साल 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला हो या फिर 2002 का गुजरात दंगा या फिर साल 2015-16 में यूपी में हुआ मुजफ्फरनगर का दंगा या फिर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला। इन सबसे अगर सबसे ज्यादा किसी पार्टी को राजनीतिक लाभ मिला है तो वो है बीजेपी। धर्म और हिंदुत्व के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण ने बीजेपी को कई राज्यों की सत्ता दिलाई।
देश के आम जनमानस खासकर हिंदुओं में यह संदेश गया कि बीजेपी ही उनके हित के बार में सोचती है जबिक कांग्रेस के अल्पसंख्यकों के प्रति झुकाव और कुछ बयानों ने हिंदुओं के एक बड़े वर्ग को उससे दूर कर दिया।
शायद यही वजह है कि इस बार बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए राहुल गांधी ने कई मंदिरों के चक्कर काटे ताकि वर्तमान सरकार से नाराज जातियां वहां कांग्रेस के हिन्दुत्व के प्रति झुकाव को देखकर आकर्षित हो जाएं।
कांग्रेस राज्य में बीजेपी का वोट बैंक रहे पटेलों के अलावा हिंदुओं के उस बड़े हिस्सों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश में जुटी जो बीजेपी को सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर आज तक वोट देती आई है। यही कारण था कि चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी रूद्राक्ष की माला पहने भी नजर आए।
खासबात यह है कि इस बार राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू धर्म के कट्टर समर्थक माने जाने वाले पीएम नरेंद्र मोदी का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया।
साल 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान उस वक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने 6 मंदिर में जाकर माथा टेका था। जबकि राहुल गांधी इस बार करीब 20 मंदिर में जाकर कांग्रेस की जीत के लिए पूजा-प्रार्थना करते नजर आए।
राहुल गांधी अपनी इस छवि से देश में बहुसंख्यक हिंदुओं को शायद यह संदेश देना चाहते थे कि कांग्रेस सिर्फ अल्पसंख्यकों की ही नहीं बहुसंख्यकों का भी भला चाहने वाली पार्टी है।
आमतौर पर माना जाता है कि कांग्रेस का अल्पसंख्यकों के प्रति ज्यादा झुकाव है जिसकी वजह से कट्टर हिंदुत्व की अवधारणा पर कांग्रेस को लगातार सत्ता खोकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
शायद यही वजह है गुजरात में 22 सालों से सत्ता में बनी हुई कांग्रेस ने भी वही नीति अपनाई जिसपर बीजेपी को अधिकांश जगहों पर सफलता मिली।
अगर कांग्रेस को इस बदली हुई रणनीति पर सफलता मिलती है तो ना सिर्फ कांग्रेस और देश में राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ेगी बल्कि देश कट्टर हिंदुत्व की तरफ एक और कदम आगे बढ़ जाएगा।
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