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बैंकों का NPA बढ़कर 56.4% हुआ, नोटबंदी भी मानी जा रही है वजह

बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल की जनवरी से लेकर दिसंबर के बीच बैंकों के एनपीए में 56.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

Updated on: 20 Feb 2017, 07:51 PM

नई दिल्ली:

बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल की जनवरी से लेकर दिसंबर के बीच बैंकों के एनपीए में 56.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आने वाले कुछ महीने में इसके और बढ़ने की आशंका है। एनपीए मतलब नॉन परफार्मिंग एसेट ये वो कर्ज होता है, जिसकी बैंक को वापस मिलने की उम्मीद कम होती है।

केयर रेटिंग्स के अनुसार बैंकों के लिये ग्राहकों को दिये गए कर्ज़ को रिकवर करना मुश्किल हो रहा है। इसकी एक बड़ी वजह नोटबंदी को भी माना जा रहा है।

माना जा कहा है नोटबंदी के कारण छोटे-मंझोले कारोबारियों को नुकसान हुआ है। जिसके कारण उन्हें कर्ज़ चुकाने में दिक्कत हो रही है। पिछले दो सालों में बैड लोन्स अब 135 फीसदी तक पहुंच गए हैं।

दिसंबर 2016 के आंकड़ों की बात करें तो देश के सरकारी और प्राइवेट बैंकों के एनपीए मिलाकर 697,409 करोड़ रुपये के हैं।

हाल ही में आरबीआई ने बैंकों के एनपीए कम करने को लेकर कई तरह की योजनाएं भी जारी की थी लेकिन इसके बाद भी पीएसयू बैंकों के बैड लोन्स इस समय 11 फीसदी पर बरकार है, और स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

आरबीआई ने बैंकों को एनपीए-बैड लोन्स को लेकर अपनी बैलेंसशीट्स मार्च 2017 तक खत्म करने की समय सीमा दी थी लेकिन इसके पूरा होने की संभावना कम ही नज़र आ रही है।

एसबीआई के एनपीए की बात करें तो 2016 के सितंबर क्वार्टर में ये 1.06 लाख करोड़ का था जो बढ़कर 1.08 लाख करोड़ हो गया है। देश के 5 नामी बैंकों के एनपीए का रेशियो 15 फीसदी से ज्यादा हो गया है जो किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं। इन 5 बैकों में इंजियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, यूनाइटेड बैंक, आईडीबीआई और बैंक ऑफ महाराष्ट्र है।

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