नोटबंदी का झटका: विश्व बैंक ने देश के जीडीपी अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी किया
नोटबंदी को लेकर देश में घिरी मोदी सरकार को दोहरा झटका लगा है। नोटबंदी के बाद पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुमान जारी करते हुए विश्व बैंक ने देश की जीडीपी अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। विश्व बैंक के बाद रेटिंज एजेंसी फिच ने भी देश के जीडीपी अनुमान में कटौती कर दी है।
highlights
- नोटबंदी को लेकर देश में घिरी मोदी सरकार को दोहरा झटका लगा है
- विश्व बैंक ने देश की जीडीपी अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है
- विश्व बैंक के बाद रेटिंज एजेंसी फिच ने भी देश के जीडीपी अनुमान में कटौती कर दी है
New Delhi:
नोटबंदी को लेकर देश में घिरी मोदी सरकार को दोहरा झटका लगा है। नोटबंदी के बाद पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुमान जारी करते हुए विश्व बैंक ने देश के जीडीपी अनुमान को 7.6 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। वहीं विश्व बैंक के बाद रेटिंज एजेंसी फिच ने भी देश के जीडीपी अनुमान में कटौती कर दी है।
इससे पहले 2016 जून में विश्व बैंक देश की जीडीपी का अनुमान 7.6 फीसदी रखा था। विश्व बैंक ने कहा, 'वित्त वर्ष 2017 में भारत का ग्रोथ रेट 7 फीसदी रहने का अनुमान है।'
8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने तत्काल प्रभाव से 500 और 1000 रुपये के नोटों को बैन कर दिया था। प्रधानमंत्री के इस फैसले के बाद कई रेटिंग एजेंसियां देश के जीडीपी अनुमान में कटौती कर चुकी है।
विश्व बैंक की तरफ से जीडीपी अनुमान में कटौती किए जाने के बाद फिच ने भी भारत को झटका देते हुए जीडीपी रेटिंग में कटौती कर दी है। फिच रेटिंग ने वित्त वर्ष 2016-17 के लिए भारत की रेटिंग घटाकर 6.9 फीसदी कर दी है जो कि पहले 7.4 फीसदी थी, लेकिन नोटबंदी के फायदों पर जारी अनिश्चितता के कारण इसमें कटौती की गई है।
फिच रेटिंग ने मंगलवार को जारी बयान में कहा, 'नोटबंदी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है, जिसके कारण हमें विकास दर के अनुमान में कटौती करनी पड़ी है।' रिपोर्ट के मुताबिक, 'हालांकि नोटबंदी से कुछ लाभ होने की संभावना है लेकिन यह इतना बड़ा नहीं होगा जिससे सरकार के वित्तीय और मध्यम अवधि में विकास दर में कोई बदलाव हो सके। नोटबंदी का असर जितने दिन तक जारी रहेगा, उतना ही इसका अर्थव्यवस्था पर असर होगा। इसलिए फिच ने 31 मार्च को खत्म होने वाले वित्त वर्ष के लिए विकास दर के अनुमान को 7.4 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है।'
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नोटबंदी से हालांकि सरकार के राजस्व में वृद्धि हुई है और बैंकों की कर्ज देने की शक्ति बढ़ी है। लेकिन फिच का कहना है, 'नोटबंदी के कारण लोगों के पास नकदी की भारी कमी हो गई। दूसरी तरफ किसानों के पास भी खाद-बीज खरीदने के पैसे नहीं हैं। इससे समूची आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई है और लोगों के बैंकों की कतार में खड़े होने से उनकी उत्पादकता पर भी असर पड़ा है।'
फिच ने कहा कि हालांकि नोटबंदी के पीछे की मंशा सकारात्मक थी और व्यापक सुधार के प्रयासों को ध्यान में रखकर की गई थी। लेकिन इससे लंबे समय के फायदे के मुकाबले तात्कालिय नुकसान ज्याद हुआ।
इससे पहले नोटबंदी के फैसले पर टिप्पणी करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि आर्थिक हालात पहले ही खराब हो चुके हैं, जबकि 'बदतर होना बाकी है।' कांग्रेस के 'जन वेदना सम्मेलन' के दौरान मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि यह उनका कर्तव्य बनता है कि वह लोगों को बताएं कि मोदी क्या गलतियां कर रहे हैं।
सिंह ने कहा, 'नोटबंदी ने देश को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। बीते दो महीनों में हालात खराब हुए हैं, लेकिन बद्तर हालात आना अभी बाकी है।' सिंह ने कहा, 'अंत की शुरुआत हो चुकी है। मोदी का गलत आंकड़ा दिखाने का दुष्प्रचार नाकाम हो चुका है।'
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