logo-image

दिल्ली अल्पसंख्यक स्कूलों में नर्सरी दाखिले की अधिसूचना पर लगी रोक

दिल्ली सरकार ने सात जनवरी को डीडीए की जमीन पर बने निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल में नर्सरी दाखिले को लेकर एक सर्कुलर जारी किया था।

Updated on: 20 Jan 2017, 09:57 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगा दी, जिसमें निजी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूल में बच्चों को सामान्य श्रेणी में नर्सरी में दाखिला देने में दूरी के मानदंड को आधार बनाने को कहा गया है।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, 'यह अदालत पहली नज़र में मानती है कि अल्पसंख्यक स्कूलों को अपने तरीके से विद्यार्थियों के दाखिले का हक है, जब तक कि वहां कोई कुप्रबंधन नहीं होता।'

अंतरिम रोक लगाते हुए अदालत ने कहा कि सरकार अल्पसंख्यक स्कूलों के दिन-प्रतिदिन के कार्यो में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसमें छात्रों को दाखिला देने और प्रशासन का अधिकार शामिल है।

दिल्ली सरकार ने सात जनवरी को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की जमीन पर बने निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल में नर्सरी दाखिले को लेकर एक सर्कुलर जारी किया था। इसमें दाखिले के आवेदन को केवल दूरी (नेबरहुड) के आधार पर स्वीकार करने को अनिवार्य बनाया गया था।

सर्कुलर में अल्पसंख्यक गैर सहायता प्राप्त स्कूलों से कहा गया था कि वे अपने यहां अनारक्षित सीटों को खुली या सामान्य सीट के रूप में रखें और इन सीटों पर दाखिला दूरी के मानदंड के आधार पर करें।

तीन निजी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों माउंट कार्मल स्कूल, रेयान इंटरनेशनल स्कूल और समरविले स्कूल ने इस सर्कुलर के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया। स्कूल का तर्क था कि इससे उनके छात्रों के दाखिले के अधिकार का उल्लंघन होता है।

स्कूलों के वकील के अनुसार अदालत के इस आदेश से राष्ट्रीय राजधानी के 15 अल्पसंख्यक स्कूलों को फायदा मिलेगा।

अदालत ने दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग (डीओई) द्वारा दाखिले के अंतिम समय में अधिसूचना लाने के लिए फटकार भी लगाई। अदालत ने विभाग को नर्सरी दाखिले के लिए एक शिक्षा नीति बनाने की सलाह दी, जिससे नीति में इस तरह के परिवर्तन कम से कम छह महीने पहले जारी हो सकें।

न्यायमूति मनमोहन ने कहा, 'रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जो यह बता सके कि आखिर यह अधिसूचना बिलकुल आखिरी क्षणों में क्यों जारी की गई, क्यों नहीं इसे पहले जारी किया गया। यह बातें उन अभिभावकों में बेचैनी पैदा करती हैं जिनके बच्चों को मौजूदा सत्र में दाखिला लेना है।'