NCLT या राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण क्या है और कैसे काम करता है? जानिए यहां
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कंपनियों के संबंध में कानूनों को संभालने के लिए NCLT को स्थापित किया गया है. NCLT भी एक तरह का कोर्ट ही है और कंपनियों से जुड़े मामले इसमें आते हैं.
highlights
- कंपनी अधिनियम 2013 सेक्शन 408 के तहत एनसीएलटी को बनाया गया था
- 2017 में नया दिवालिया कानून प्रभाव में आने के बाद इसे कानूनी ताकत मिली
नई दिल्ली :
आपने अक्सर सुना होगा कि ये कंपनी दिवालिया हो गई और उसका मामला एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण-NATIONAL COMPANY LAW TRIBUNAL) के पास चला गया था. कंपनी अधिनियम 2013 सेक्शन 408 के तहत एनसीएलटी को बनाया गया था और इसने कंपनी अधिनियम 1956 का स्थान लिया हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कंपनियों के संबंध में कानूनों को संभालने के लिए NCLT को स्थापित किया गया है. NCLT भी एक तरह का कोर्ट ही है और कंपनियों से जुड़े मामले इसमें आते हैं. बता दें कि शुरुआती दौर में एनसीएलटी की दिल्ली, अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में शाखाएं हैं. बता दें कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 245 के तहत NCLT का गठन किया गया है.
एनसीएलटी क्या है
जून 2016 में एनसीएलटी की स्थापना की गई थी और 2017 में नया दिवालिया कानून प्रभाव में आने के बाद इसे कानूनी ताकत मिली. बता दें कि पिछली 12 फरवरी को बैंकों को बैंकिंग रेग्युलेटर ने आदेश दिया था कि अगर डिफॉल्टर अपने रिपेमेंट प्लान के साथ 6 महीने में हाजिर नहीं हों तो उस मामले को सीधे एनसीएलटी में लाया जाए. बैंकिंग रेग्युलेटर का कहना था कि ऐसा करने से कोर्ट में इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी होगी. गौरतलब है कि 31 जनवरी तक अदालतों में इस तरह के तकरीबन 9073 मामले हैं. इन मामलों में 2511 दिवालियापन, 1,630 मामले विलय और 4,932 मामले कंपनी ऐक्ट की अन्य धाराओं से जुड़े हुए हैं.
बता दें कि कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में पर मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में जाता है. कंपनी के रिवाइव के लिए इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त किया जाता है. इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल का काम यह होता है कि वह कंपनी को रिवाइव करने का प्रयास करे. अगर कंपनी 180 दिन के भीतर रिवाइव हो जाती है और वह सामान्य रूप से कामकाज करना शुरू कर देती है तो ठीक अन्यथा उस कंपनी को दिवालिया मानकर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी जाती है. बता दें कि कंपनी दिवालिया होने के बाद Wind-up Petition दाखिल करती है. इसके बाद कंपनी अपनी कुल संपत्ति की बिक्री करके अपने लेनदार को पैसा चुका देती है.
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