सिर्फ गाना नहीं, रब की इबादत है 'दमा दम मस्त कलंदर...'
आज भले ही 'दमादम मस्त कलंदर' को कई गायकों ने अपनी आवाज में सजाया हो, लेकिन इसकी यादगार धुन लाहौर के मशहूर फिल्म संगीतकार मास्टर आशिक हुसैन ने बनाई।
नई दिल्ली:
'हो लाल मेरी... पत रखियो बला झूले लालण... दमा दम मस्त कलंदर' ये गाना हम बरसों से सुनते आ रहे हैं। इसे सुनकर ऐसा लगता है कि दिल रब की इबादत कर रहा है। रूह को रब से जोड़ रहा है। दिल, रूह, जिस्म.. सब थिरकने लगता है। यह बेहद मशहूर सूफियाना सॉन्ग है, जो सिंध प्रांत के महान संत 'झूले लाल कलन्दर' को संबोधित कर उनके सामने एक मां की फरियाद को रखता है।
क्या है 'दमादम मस्त कलन्दर' का अर्थ है?
'दमादम मस्त कलन्दर' का अर्थ है, 'हर सांस (दम) में मस्ती रखने वाला फकीर (कलन्दर)।' झूले लाल के साथ-साथ इसमें एक और सूफी संत 'शाहबाज कलन्दर' का भी जिक्र है। झूले लाल साईं हमेशा लाल चोगे पहनते थे, इसलिए उन्हें 'लाल' या 'लालन' नाम से पुकारा जाता है। गाने का हर छंद 'दमादम मस्त कलन्दर, अली दम-दम दे अन्दर' पर खत्म होता है, जिसका मतलब है 'दम-दम में मस्ती रखने वाला कलन्दर (फकीर), जो हर सांस में रब (अली) को रखता है।'
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'शाहबाज कलन्दर' का जन्म
'शाहबाज कलन्दर' कब और कहां पैदा हुए, इसके लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हालांकि कहा जाता है कि उनकी जीवनयात्रा 1324 में पूरी हुई थी। उनकी दरगाह (पाकिस्तान में) पर हर मजहब को मानने वालों की भीड़ होती थी। 'शाहबाज कलन्दर' कहते थे कि 'जो भी करना है, दिल से करो।'
कवि अमीर खुसरो ने की रचना
रगों में जोश भर देने वाले इस गाने को सुनकर दिल रब के करीब चला जाता है। कहा जाता है कि कवि अमीर खुसरो ने सबसे पहले शाहबाज कलंदर के संबोधन में इसकी रचना की थी। फिर बाद में बाबा बुल्लेशाह ने भी कुछ पंक्तियां जोड़ी थीं। ऐसा माना जाता है कि अमीर खुसरो ने ही सबसे पहले इस गाने को गाया था।
कई गायकों ने दी अपनी आवाज
क्या आप जानते हैं कि इस गाने में पंजाबी और सिंधी भाषाओं का इस्तेमाल किया गया है। इसे बहुत से जाने-माने गायकों ने गाया है। जैसे, आबिदा परवीन, नुसरत फतेह अली खान, रूना लैला और रेश्मा वडाली भाई, हंसराज हंस और शाजिया खुश्क। आशा भोंसले से लेकर शंकर महादेवन ने भी अपनी सुरीली आवाज से इस गाने को गाया है। मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम ने 'मस्त कलंदर' में इस गाने को गाया।
पाकिस्तान में भी छाया गाना
वहीं 2013 में 'डेविड' फिल्म में इस गाने को फिर दोहराया गया। 'धनक', 'डी-डे' और 'पार्टीशन 1947' में इस गाने को अलग-अलग गायकों ने अपने अंदाज में पेश किया। इस देश में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी फिल्मों में भी 'मस्त कलंदर' छाया रहा। नूरजहां, नुसरत फतेह अली खान, अहमद रुश्दी और मुनीर हुसैन ने भी 'दम मस्त कलंदर अली अली' गाया।
पहली बार आशिक हुसैन ने बनाया गाना
आज भले ही 'दमादम मस्त कलंदर' को कई गायकों ने अपनी आवाज में सजाया हो, लेकिन इसकी यादगार धुन लाहौर के मशहूर फिल्म संगीतकार मास्टर आशिक हुसैन ने बनाई। 2017 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन इस गाने को बनाकर वह हमेशा-हमेशा के लिए सभी के दिलों में बस गए।
सिर्फ ये था गाने का मकसद
'दमादम मस्त कलंदर' वाले सूफी संत लाल शाहबाज की दरगाह पर आने वाले लोगों की तादाद देखकर ही इस बात का अंदाजा हो जाता है कि इस दरगाह का हर खास और आम में कितना रुतबा है। हर शख्स यहां सजदा करता है और मन्नत मांगता है। इस गाने का मकसद सिर्फ इतना है कि दुनिया के वाशिंदे को लाल शाहबाज के नूर के बारे में पता चले और ऐसा ही हुआ भी।
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