गूगल ने डूडल बनाकर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां को किया याद, आजादी के दिन लाल किले पर छेड़ी थी तान
बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगंबर खां और मिट्ठन बाई के यहां बिहार के डुमरांव में हुआ था।
मुंबई:
भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का 21 मार्च को 102वां जन्मदिवस है। इस मौके पर गूगल ने खास डूडल बनाकर उन्हें याद किया है।
1916 को जन्में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने देश ही नहीं बल्कि दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाया। उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री, तानसेन समेत दर्जनों अवॉर्ड्स से नवाजा जा चुका है। वह तीसरे भारतीय संगीतकार थे, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। आजादी के दिन लाल किले और पहले गणतंत्र दिवस पर शहनाई बजाने से लेकर उन्होंने हर बड़ी महफिल में तान छेड़ी।
ऐसे पड़ा 'बिस्मिल्लाह' नाम
बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगंबर खां और मिट्ठन बाई के यहां बिहार के डुमरांव में हुआ था। उस दिन उनके पिता पैगंबर बख्श राज दरबार में शहनाई बजाने के लिए घर से निकलने की तैयारी कर रहे थे कि तभी उनके कानों में एक बच्चे की किलकारी सुनाई दी। अनायास सुखद एहसास के साथ उनके मुंह से 'बिस्मिल्लाह' शब्द ही निकला। उन्होंने अल्लाह के प्रति आभार व्यक्त किया। हालांकि, उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन था, लेकिन वह बिस्मिल्लाह के नाम से जाने गए।
6 साल की उम्र में आए बनारस
बिस्मिल्लाह के खानदान के लोग दरबारी राग बजाने में माहिर थे, जो बिहार की भोजपुर रियासत में अपने संगीत का हुनर दिखाने के लिये अक्सर जाया करते थे। उनके पिता बिहार की डुमरांव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में शहनाई बजाया करते थे। 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खां अपने पिता के साथ बनारस आ गये। वहां उन्होंने अपने मामा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद मामा 'विलायती' विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे।
'शहनाई' थी उनकी दूसरी बेगम
उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन खानम के साथ हुआ, जो उनके मामू सादिक अली की दूसरी बेटी थी। उनसे उन्हें 9 संताने हुई। वह हमेशा एक बेहतर पति साबित हुए। वह अपनी बेगम से बेहद प्यार करते थे, लेकिन शहनाई को भी अपनी दूसरी बेगम कहते थे। 66 लोगों का परिवार था, जिसका वह भरण-पोषण करते थे। अपने घर को कई बार बिस्मिल्लाह होटल भी कहते थे। लगातार 30-35 सालों तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में शामिल था। अलीबख्श मामू के निधन के बाद खां साहब ने अकेले ही 60 साल तक इस साज को बुलंदियों तक पहुंचाया।
बिस्मिल्लाह खां भले ही शिया मुसलमान थे, फिर भी वह अन्य हिन्दुस्तानी संगीतकारों की तरह धार्मिक रीति रिवाजों के प्रबल पक्षधर थे। वह काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में जाकर तो शहनाई बजाते ही थे, इसके अलावा गंगा किनारे बैठकर घंटों रियाज भी किया करते थे। वह पांच बार के नमाजी थे, हमेशा त्यौहारों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। लोग बताते हैं कि वह बनारस छोड़ने के ख्याल से ही इस कारण व्यथित होते थे कि गंगाजी और काशी विश्वनाथ से दूर नहीं रह सकते थे। उनके लिए संगीत ही उनका धर्म था। दिल का दौरा पड़ने की वजह से 21 अगस्त 2006 को वह दुनिया से रुखसत हो गए।
(विकीपीडिया इनपुट के साथ)
वीडियो
IPL 2024
-
IPL 2024 : BCCI ने पंजाब किंग्स की जर्सी के कलर्स को क्यों किया बैन? प्रीति जिंटा ने खुद बताई बड़ी वजह
-
IPL 2024: RCB के खिलाफ इस मामले में धोनी-रोहित के पास टॉप पर पहुंचने का मौका, अभी वॉर्नर हैं आगे
-
IPL 2024 : चेपाक स्टेडियम में कैसा है चेन्नई सुपर किंग्स का ट्रैक रिकॉर्ड? रिकॉर्ड देख झूम उठेंगे CSK फैंस
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Famous Hanuman Temples: भारत के 10 प्रसिद्ध हनुमान मंदिर और उनका इतिहास जानिए
-
Online Bhagavad Gita Benefits: ऑनलाइन भगवद गीता का प्रचार से विश्व को मिलने वाले 5 बड़े फायदे
-
Feeding the Hungry: सनातन धर्म में भूखों को खाना खिलाने का क्या है महत्व
-
Mangalwar Ke Upay: हनुमान जी को करना चाहते हैं खुश? बस मंगलवार के दिन कर लें इनमें से कोई भी 1 उपाय