FLASHBACK: जब 'मुगल-ए-आजम' के निर्देशक को नौशाद ने संगीत देने किया इंकार...
इस वाकया से नौशाद बेहद नाराज हुए और उन्होंने नोटों का बंडल वापस करते हुए कहा, 'ऐसा उन लोगों के लिए करना, जो बिना एडवांस लिये काम नहीं करते। मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा'।
highlights
- निर्देशक के आसिफ नौशाद के घर गये थे, नौशाद हारमोनियम पर थे और तभी बिना कुछ सोचे आसिफ ने 50 हजार रुपये हारमोनियम पर फेंके और कहा कि मेरी फिल्म के लिए भी धुन तैयार करो
- नौशाद बेहद नाराज हुए और उन्होंने नोटों का बंडल वापस करते हुए कहा, 'ऐसा उन लोगों के लिए करना, जो बिना एडवांस लिये काम नहीं करते। मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा'।
नई दिल्ली:
'ट्रेजेडी किंग' के नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान ही फिल्मी दुनिया में अपना आगाज कर दिया था।
भारतीय सिनेमा की कई क्लासिकल फिल्मों में काम करने वाले अभिनेता को आठ दशक से ज्यादा समय इंडस्ट्री में हो चुके हैं। लेकिन आज भी उनके प्रशंसकों का दिल उनके लिए धड़कता है।
आपको 1960 में आई दिलीप कुमार की यादगार फिल्म 'मुगल-ए-आजम' तो याद ही होगी। भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो चुकी 'मुगल-ए-आजम' के संगीत को लोगों ने खासा पंसद किया।
लेकिन इसके पीछे की कहानी से आप शायद ही वाकिफ होंगे। तो देर किस बात की है, आइए आपको बताते हैं इसके पीछे छिपे हुए कुछ ऐसे ही अनकहे किस्सों के बारे में।
दरअसल, 'मुगल-ए-आजम' में मधुर संगीत देने वाले संगीत सम्राट नौशाद ने इसका संगीत निर्देशन करने से इनकार कर दिया था। मीडिया रिर्पोट्स में कहा जाता है कि निर्देशक के आसिफ तब नौशाद के घर गये थे, नौशाद हारमोनियम पर थे और तभी बिना कुछ सोचे आसिफ ने 50 हजार रुपये हारमोनियम पर फेंके और कहा कि मेरी फिल्म के लिए भी धुन तैयार करो।
इस वाकया से नौशाद बेहद नाराज हुए और उन्होंने नोटों का बंडल वापस करते हुए कहा, 'ऐसा उन लोगों के लिए करना, जो बिना एडवांस लिये काम नहीं करते। मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा'।
इसके बाद जब आसिफ को गलती का एहसास हुआ तब उनके मनाने पर नौशाद फिल्म का संगीत देने के लिए तैयार हुए और इसके साथ ही फिल्म ने रिलीज होते ही इतिहास रच दिया।
और पढ़ें: राजुकमार राव की फिल्म 'न्यूटन' आॅस्कर की दौड़ से हुई बाहर
वहीं फिल्म के एक दृश्य में शहजादा सलीम के किरदार के रूप में उन्होंने कहा था, 'तकदीरें बदल जाती हैं, जमाना बदल जाता है, मुल्कों की तारीख बदल जाती है, शहंशाह बदल जाते हैं, मगर इस बदलती हुई दुनिया में मोहब्बत जिस इंसान का दामन थाम लेती है, वही इंसान नहीं बदलता।'
और ये बोल शायद दिलीप कुमार के लंबे प्रेरणामयी जीवन को बखूबी बयां करते हों, लेकिन उनके अभिनय को नहीं।
फिल्म 'मुगल-ए-आजम' (1960) में एक कठोर, अड़ियल पिता पृथ्वीराज कपूर (अकबर की भूमिका में) के सामने विद्रोही बेटे का किरदार निभाया था।
'ट्रेजेडी किंग' कहे जाने वाले दिलीप कुमार का ही कमाल था कि उन्होंने कॉमेडी में भी वैसे ही जौहर दिखाए थे। सोमवार को 95 साल के हो गए अभिनेता ने बतौर कलाकार और एक शख्सियत, दोनों के रूप में खुद को बार-बार गढ़ा है।
मोहम्मद यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार की अभिनय क्षमता ऐसी ही थी।
दिलीप कुमार ने नए स्वतंत्र भारत और इसकी विविधता व उज्जवल भविष्य को 'नया दौर' (1957) जैसी फिल्मों में बखूबी दर्शाया, जिसका जिक्र लॉर्ड मेघनाद देसाई ने अपनी पुस्तक 'नेहरूज हीरो: दिलीप कुमार इन द लाइफ आफ इंडिया' में किया है।
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Amalaki Ekadashi 2024 Date: 20 या 21 मार्च, आमलकी एकादशी व्रत कब? इस विधि से करें पूजा मिलेगा बहुत लाभ!
-
Holi 2024 Shubh YOG: 100 साल बाद होली पर बन रहा है शुभ संयोग, इन 4 राशियों के घर आएंगी खुशियां
-
Mauli Mantra: क्या है मौली मंत्र जानें हिंदू धर्म में इसका महत्व
-
Lathmaar Holi 2024: क्या है नंदगांव की लट्ठमार होली का पूरा इतिहास, जानें इसका महत्व