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अमिताभ बच्चन बर्थडे: जब पूर्व मुख्यमंत्री को पौने दो लाख वोटों से हराया था बिग बी ने

गांधी परिवार से पुरानी पारिवारिक दोस्ती को अमिताभ ने भी बढ़ाया। हरिवंश राय बच्चन और जवाहर लाल नेहरू की दोस्ती अमिताभ और राजीव गांधी के रूप में आगे बढ़ी।

Updated on: 11 Oct 2017, 05:03 PM

highlights

  • 1984 में अमिताभ अपने गृहनगर इलाहाबाद से 8वीं लोकसभा में कांग्रेस की सीट पर चुनाव में उतर गए
  • बोफ़ोर्स घोटाले में राजीव गांधी को लेकर ऐसा बवाल मचा कि उन्होंने मात्र 3 साल बाद ही 1987 में इस्तीफ़ा दे दिया
  • उनकी पत्नी और मशहूर अभिनेत्री जया भादुड़ी बच्चन को 2004 में सपा से राज्यसभा सदस्यता मिली

 

नई दिल्ली:

भारतीय सिनेमा में पिछले कई दशकों से राज कर रहे अमिताभ बच्चन अपने करियर में राजनीतिक जुड़ावों को लेकर भी चर्चा में रहे हैं। जी हां, बुधवार को 75 वर्ष पूरे कर चुके अमिताभ राजनीतिक गलियारों से संबंधों के अपने मोह को कभी नहीं त्याग पाए।

गांधी परिवार से पुरानी पारिवारिक दोस्ती को अमिताभ ने भी बढ़ाया। हरिवंश राय बच्चन और जवाहर लाल नेहरू की दोस्ती अमिताभ और राजीव गांधी के रूप में आगे बढ़ी। दोनों की दोस्ती ऐसी थी कि राजीव अमिताभ की शूटिंग के दौरान भी उनसे मिलने चले जाते थे।

80 के दशक तक अमिताभ कई सुपरहिट फ़िल्म कर अपने करियर के शीर्ष पर थे। लेकिन 1982 में 'कुली' फ़िल्म की शूटिंग के दौरान लगी गंभीर चोट के कारण अमिताभ को ब्रेक लेना पड़ा। इसी दौरान उनके पक्के दोस्त राजीव गांधी ने अमिताभ की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें राजनीति में प्रवेश करने की सलाह दी।

1984 में अमिताभ बच्चन अपने गृहनगर इलाहाबाद से 8वीं लोकसभा में कांग्रेस की सीट पर चुनाव में उतर गए। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री एच एन बहुगुणा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा और लगभग पौने दो लाख वोट के बड़े अंतर से जीत गए।

पहली बार सांसद बने अमिताभ अपने इस सक्रिय राजनीतिक करियर में ज़्यादा दिन नहीं टिक पाए। 80 के दशक में हुए बोफ़ोर्स घोटाले में कांग्रेस पार्टी और राजीव गांधी के फंसने के बाद ऐसा बवाल मचा कि अमिताभ भी निशाने पर आ गए और उन्होंने मात्र 3 साल बाद ही 1987 में इस्तीफ़ा दे दिया।

इस मामले में अमिताभ को भी अदालत जाना पड़ा था, लेकिन उन्हें दोषी नहीं पाया गया। इस्तीफ़ा देने के बाद राजीव गांधी को यह फ़ैसला नागवार गुजरा था और बाद में 1991 में राजीव की हत्या के बाद दोनों परिवारों के बीच दूरियां बढ़ गई।

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हालांकि बाद में अमिताभ ने इलाहाबाद की जनता से किए वादे को पूरा न कर पाने का अफ़सोस भी जताया। यहां तक कि अमिताभ बच्चन ने इस्तीफ़ा देने के बाद राजनीति को एक गंदी जगह भी बताया।

राजनीति से इस्तीफ़ा देने के बाद वे फ़िल्मों में ही चले गए। लेकिन फिर जब उनकी कंपनी एबीसीएल आर्थिक नुकसान से जूझ रही थी, तब उनके पुराने मित्र और समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह ने मदद की थी। उसके बाद अमिताभ ने भी सिंह की पूरी मदद की और सपा के विज्ञापनों और प्रचार- प्रसार में भी पूरी भागीदारी दिखाई।

उनकी पत्नी और मशहूर अभिनेत्री जया भादुड़ी बच्चन को 2004 में सपा से राज्यसभा सदस्यता मिल गई। जया बच्चन 2012 में दोबारा राज्यसभा की सदस्य बनी। लेकिन बाद में अमर सिंह से भी अमिताभ की दूरियां बढ़ी, लेकिन पारिवारिक लगाव अब भी बरकरार है।

अमिताभ पिछले कई सालों से गुजरात पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर भी बने हुए हैं। तो अमिताभ का राजनीतिक कनेक्शन उनकी फ़िल्मी दुनिया से इतर एक अलग व्यक्तित्व को बयां करता है। इसलिए सिर्फ़ एक अभिनेता के तौर पर अमिताभ को देखना, उनके व्यक्तित्व के कई सिरों को छोड़ने जैसा होगा।

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पिछले साल पनामा पेपर्स में अमिताभ और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन का नाम आने के बाद उन पर कई सवाल उठे थे। हालांकि वे इस बात से इंकार करते हैं कि उन्होंने टैक्स और किसी भी तरह के कानूनों का उल्लंघन किया है।

सक्रिय राजनीतिक गतिविधियों से भले ही अमिताभ अलग हों, लेकिन उनकी शख़्सियत हर सरकार के समय में समाज के सामने अलग- अलग रूपों में बनी रही। वैसे हिंदी सिनेमा का इतिहास को देखा जाय, तो भारतीय जनमानस पर उनका अलग प्रभाव छोड़ता हुआ दिखाई देता है।

अमिताभ बच्चन के योगदानों के कारण भारतीय सिनेमा में उनकी प्रासंगिकता ज़रूर बनी रहेगी। लेकिन करियर के दौरान अपने राजनीतिक छवि में वे काफ़ी संतुलन बनाए हुए दिखते हैं। इस कारण उनका गठजोड़ हर दौर के सरकारों के साथ काफ़ी समभाव रहा है।

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